आश्रम दाता

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महंत श्री दिगंबर नागराज पुरी जी महाराज (बाप जी )

महंत श्री दिगंबर नागराज पुरी जी महाराज (बाप जी) के नाम भक्ति तपस्या धारण के बाद उनके गुरु मोनी जी महाराज से मिला। महाराज जी के पिताजी अचलनाथ मंदिर के गादीपति थे, अचलनाथ मंदिर में जितनी भी समाधियाँ हुई, वो सब आप के परिवार से है, जिसमें काफी जीवित समाधियाँ है ,  आज भी अचलनाथ मंदिर में है। अपने पिताजी की भक्ति से प्रेरित होकर आप भी बचपन से ईश्वर भक्ति में लीन व हमेशा ध्यान में रहते थे। आपके परिवार में 17वीं तक महात्मा हुए 18 पीढ़ी में आप श्री महाराज जी हैं। एक ही परिवार से 18 पीढ़ी तक सन्यास लेना एक दुर्लभ योग है फिर जैसे-जैसे समय चला आप भी सांसारिक जीवन की तरह कामकाज करने लगे आप भी लहरिया हैंडिक्राफ्ट्स में मैनेजर के पद पर कार्य करते थे। आपको अंग्रेजी, हिंदी और भी भाषाओं का अच्छा ज्ञान है और एक हैंडिक्राफ्ट फैक्ट्री

महंत श्री दिगंबर नागराज पुरी जी महाराज

में अच्छे व्यवसाय पर कार्यरत थे और भक्ति स्मरण को अपने दैनिक जीवन का प्राथमिकता देते थे फिर आप भक्ति की शक्ति ज़्यादा होने से आपके मित्र कानजी भाई से मिले फिर उन्होंने अपनी भक्ति के बारे में बताया, उसी से प्रेरित होकर उन्होंने अपने गुरु महाराज गुरो के तालाब 

स्थित , श्री मोनी जी महाराज के धूणा पर गए , वहां आप पर श्री मोनी जी महाराज की कृपा हुई और उनके निर्देश से ही आप अपना आगे का जीवन में वैराग्य अपना लिया और फिर एक दिन अपने परिवार वालों से अनुमति लेकर सांसारिक मोह माया छोड़कर अपने जीवन को अपने दिगंबर रूप में धारण करके आज दिन तक तपस्या में हैं। इन्होंने काफी वर्षों तक यहां वहां तपस्या की फिर 2013 में आपको श्री औघड़ नाथ महादेव स्थान मिला , यहां आकर आपने एकांत तपस्या की, आपके लायक जगह मिली तब आपने 12 वर्षों तक मौन व्रत तपस्या में थे। फिर आपने अग्नि तपस्या, जलधारा तपस्या व कई प्रकार की कठिन तपस्या की और आप श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा से संबंध रखते है और आपने अखाड़ा से ही श्री दिगम्बर की पदवी ली है।

श्री अचलनाथ महादेव मंदिर

साल में आप (बाप जी) एक बार श्री अचलनाथ मंदिर जो कि शहर में स्थित है वहां नेपाली बाबा ने भी तपस्या की है।वह एक तपोभूमि है अचलनाथ मंदिर में महंत भीम पुरी जी महाराज इनकी पीढ़ी में हुए जिन्होंने गामा पहलवान को अचलनाथ में हराया था और महंत केसर पुरी जी महाराज हुए जो आरती करते समय आरती छोड़ देते थे और आरती अपने आप घूमती थी। अचलनाथ महादेव में आपके पूर्वजों की समाधि है जिस पर अखातीज के दिन आप पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।

श्री अचलनाथ मंदिर पुराना नागा मठ है और बाप जी के पिताजी भी धूणापति रह चुके हैं। अचलनाथ मंदिर बााप जी की शुरुआती तपस्या की कड़ी है, यहीं से भक्ति प्रारंभ हुई, फिर श्री औघड़ नाथ महादेव आपकी तपोभूमि बन गई। औघड़ नाथ महादेव पर पहले लाइट नहीं थी, ना ही आवागमन की सुविधा। बााप जी की कृपा से यहाँ सब सुविधाएं हुई। आज यहाँ माँ माता विवरण करती है। काफी पशु पक्षी दाना पानी करते हैं। अद्भुत शांति मिलती है। आज देश के, प्रदेश के, बड़े संत, साधु, मठाधीश, नामी सभी दर्शनार्थ पधारते हैं।

महंत श्री दिगंबर नागराज पुरी जी महाराज