आश्रम

श्री औघड़ नाथ महादेव जी की कथा: कुँवर शुभकरण जी की तपस्या और शिव से साक्षात्कार की अद्भुत गाथा

श्री औघड़ नाथ महादेव मंदिर, राजस्थान की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों में से एक है, जिसका इतिहास ना केवल धार्मिक श्रद्धा से जुड़ा हुआ है बल्कि वीरता, तपस्या और परम भक्ति की अनोखी कहानी भी कहता है। इस मंदिर की कथा कुँवर श्री शुभकरण जी से जुड़ी हुई है। राव सलखा जी की 11वीं पीढ़ी में पृथ्वीराज जी के कुंवर शुभकरण जी, जो श्री बैजनाथ जी के वरदान से हुए थे, उन्हें श्री बैजनाथ जी का इष्ट धारण था और भक्ति स्मरण ज्यादा करने से महादेव जी स्वप्न में दृष्टांत देने लगे थे और महादेव जी के इष्ट पूरा बताते थे, जो महादेव जी स्वप्न में आकर पूरी बात बता देते थे और फलोदी के श्री उदय सिंह जी को जोधपुर मारवाड़ का राज दिलाने में आपका बहुत बड़ा सहयोग रहा हैं। संवत् 1640 में श्री उदय सिंह जी को ‘मोटा राजा’ का ख़िताब दिलवाया। दरबार जोधपुर पधारे, तब शुभकरण जी को उनके काम से भी मुसाहिबी दिलवाई और 25000 का पट्टा पाल गांव और जागीर इनायत करवाई । संवत् 1643 में इन्होंने सिवाना के कल्ला रायमलोत को मारकर फतह किया और श्री मल्लिनाथ जी के दर्शन कर तिलवाड़ा मेला शुरू करवाया।

ओगड़नाथ आश्रम का महान इतिहास
श्री ओगड़नाथ आश्रम का महान इतिहास

श्री बेजनाथ महादेव मंदिर का निर्माण नाहर सिंह जी मंडोर ने कराया था।  इसके बाद में जीर्णाद्वार संवत् 1657 में शुभकरण जी ने नया इंड़ो, परकोटा, हॉल, पोल बनवाया और नया नंदीगण पधारिया,  जिस पर आज भी श्री शुभकरण जी का नाम खुदा है। शुभकरण जी को श्री बेजनाथ जी का इष्ट होने के कारण हमेशा पाल की हवेली से आप पंचकुंडा के रास्ते से श्री बेजनाथ महादेव मंदिर जाते थे। महादेव के अभिषेक के लिए हमेशा के भांति एक दिन शुभकरण जी अपने सिपाहियों के साथ श्री बेजनाथ जी महादेव अभिषेक के लिए निकले और पंचकुड़ा के ऊपर नागा पहाड़ पर उनको एक बाल रूप में बालक (औघड़ रूप में बालक) मिला, बालक ने शुभकरण जी से पूछा बर्तन में क्या है तो उनके आदमियों ने कहा जल है यह कहकर आगे निकल गए और श्री बेजनाथ महादेव पहुँचे और अभिषेक के लिए बरनी खोली तो उसमें पानी था जबकि वह अभिषेक के लिए दूध लेकर आए थे। यह देखकर शुभकरण जी, अपने आदमियों के साथ वापस

उसी स्थान पर पहुँचे जहाँ उनको बाल रूप में बालक मिले थे लेकिन उन्होंने और उनके आदमियों ने काफी ढूंढा मगर वह बालक नहीं मिला तो वह समझ गए महादेव जी बाल रूप में (औघड़ रूप में) मिले, तभी से वहाँ शिवलिंग स्थापित कर मंदिर बनवाया और तभी से उसे नाग पहाड़ के ऊपर मंदिर को लोग मिलिया महादेव (क्योंकि शुभकरण जी को महादेव बाल रूप में मिले थे) नाम पड़ा और जबकी बालक औघड़ रूप में थे,  तो श्री ओगड़नाथ महादेव मंदिर जी के नाम से प्रसिद्ध हुए, भोगी शैल परिक्रमा दर्शन में एक दर्शनीय मंदिर है। मंदिर की जगह बेहद सुंदर है, बरसात में यहाँ की चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है। मंदिर में एक बरसात के पानी का कुंड है, जिसमें लोग धार्मिक स्नान करते हैं।

जैसे-जैसे समय बीतता गया और राव सलखा जी की उनकी 24 पीढ़ी के कुंवर श्री सुमेर सिंह जी पुत्र ठाकुर श्री मान सिंह जी पाल इनका जन्म 16 जुलाई 1976 गुरुवार के दिन पंचम संवत 2033 सावन बदी को हुआ आपकी पीढ़ी में भी बड़े-बड़े ज्ञानी व समाज सुधारक व भक्ति भाव वाले महापुरुष हुए जिसमें श्री केसर सिंह जी, श्री रंजीत सिंह जी, श्री आईदान सिंह जी थे! यह भी (सुमेर सिंह जी) अपने पूर्वज व श्री शुभकरण जी की तरह महादेव और देवी श्री आईनाथ जी की भक्ति और पूजा पाठ स्मरण बचपन से ही रखते है आप भी श्री बेजनाथ महादेव हर सोमवार अभिषेक के लिए पधारते थे लगभग 1 साल अभिषेक के बाद निर्जला एकादशी के दिन श्री बेजानाथ महादेव जी के महंत कैलाशपुरी जी ने सुमेर सिंह जी को बातों बातों में अवगत कराया की ऊपर नाग पहाड़ पर एक महादेव जी का और मंदिर है और भक्ति भाव वाले महंत भी है आप दर्शन के लिए पधारे तब सुमेर सिंह जी उनके साथ ऊपर और श्री औघड़ नाथ महादेव पधारे और वहां आपकी मुलाकात महंत श्री दिगंबर नागराज पुरी जी महाराज (बाप जी ) से हुई तब महाराज जी (बाप जी ) मौन तपस्या में थे तब महाराज जी ने बाकी भक्तों को इशारे से रवाना कर दिया और एकांत में महाराज जी (बाप जी ) व सुमेर सिंह जी को तख्ती (पाटी) पर लिखकर बताया की आपके परिवार से आज 145 साल बाद पुनः आए हैं बाप जी ने कहा यह मंदिर आपके पूर्वजों का है उनको यहाँ महादेव मिले थे और आप अब यहाँ पधारे हैं आप संभालें मैं तो यहां संरक्षक हूं और पुरानी बातें जो इतिहास को बताते हुए उनको अवगत कराया की आपका और महाराज जी (बाप जी) का पिछले जन्मो से लगाव हैं भक्ति, समाज कल्याण, महादेव भक्ति, लोक कल्याण आदि से जुड़े हैं।

तब से आप सुमेर सिंह जी श्री औघड़ नाथ महादेव जी के दर्शन के लिए पधारते रहते हैं उस दिन से लेकर आज दिन तक सुमेर सिंह जी और महाराज जी (बाप जी) ने मिलकर महादेव के आशीर्वाद से सभी भक्तों के सहयोग से यह विस्तृत मंदिर प्रांगण बनाया है। क्योंकि यह जगह श्री औघड़ नाथ महादेव जहाँ महादेव मिले थे और लोग कहते हैं कि श्री बेजनाथ जी में आज भी शुभकरण जी की मौजूदगी दिखती है तो बेजनाथ जी से लेकर औघड़ नाथ महादेव तक और श्री औघड़ नाथ महादेव मंदिर प्रांगण क्षेत्र में इतनी दैवीय ऊर्जा आज भी जागृत है कि आपका एकांत, मानसिक शांति, हृदय को अंदर तक छू जाने वाली अशिम भक्ति स्मरण शक्ति मौजूद है। सुमेर सिंह जी ने महाराज जी के निर्देश अनुसार एक संस्था को बनाया है “श्री औघड़ नाथ जी महादेव वह पर्यावरण विकास संस्थान” इसके तहत सभी लोग समाज कल्याण, महादेव भक्ति, लोक कल्याण कार्य करेंगे यह मंदिर ना केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आत्मशक्ति का प्रतीक भी बन गया है। श्री औघड़ नाथ महादेव जी की भक्ति और तप का यह स्थल आज भी हजारों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है।